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Knowledge Article by Shree Triloki Nath Ji Verma

मनुस्मृति के अनुसार, ब्राह्मणः क्षत्रियो, वैश्य त्रयो वर्ण द्विजातयः। चतुर्थ एक जाति शूद्र अस्ति, नस्ति तु पंचमः।। अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तीन वर्ण द्विज कहलाते हैं तथा चैथी एक जाति शूद्र है। इसके अलावा पांचवीं जाति कोई नहीं है। इससे स्पष्ट होता है कि स्वर्णकार उपरोक्त चार में से ही कोई एक जाति का है।                                              (मनुस्मृति अध्याय 10 श्लोक 4) स्वर्ण का कार्य करने वाला स्वर्णकार कहलाता है। अर्थात् स्वर्णकार कोई वर्ण या जाति नहीं कही जा सकती है। किन्तु आज जब वर्ण का स्थान जाति ने ले लिया तो व्यवसाय का चयन स्वेच्छा न रहकर वंशानुगत हो गया है। व्यवसाय या कार्य के आधार पर जाति संगठन गठित हुए हैं। एक प्रकार से संकुचित दायरा बनने का यह एक मुख्य कारण है।   स्वर्णकार शब्द की यात्रा: स्वर्णकार शब्द का ऐतिहासिक क्रम खोजने पर ज्ञात होता है कि मानवोत्पŸिा से लेकर ईशा की चैथी शताब्दी तक का सफर इस शब्द को निम्न प्रकार करना पड़ा। वैदिक साह...